बुधवार, 9 मार्च 2011

एक लम्बी कहानी














दोनों शाम होने से पहले ही झील किनारे की उस बेंच पर आ बैठे थे, जो गवाह थी कि पिछले लगभग

दो साल से दौनों की अधिकतर शामें किस तरह गुजरी है. अक्सर घंटों तक यूँ ही बैठे रहते.

लड़का झील के नीले पानी को सिंदूरी होते देखता.लड़की लड़के की आँखों में लिखी नज़्म पढ़ लिया करती थी.





खामोशी संवाद करती.





लड़के ने सुबह उससे मोबाइल पर बात करते हुए कहा था - मुझे आज शाम तुमसे कुछ पूछना है.

लड़की ने सुबह ही तय कर लिया था यदि आज उसने वही पूछा जो वो सोच रही है,तो कल से उससे

मिलना बंद कर देगी.





आज भी लड़के नें हमेशा की तरह अपना हाथ लड़की की तरफ बढाया. हमेशा ही लड़की उसके हाथ में

अपना हाथ रख दिया करती थी.

लेकिन आज....

आज उसने अपने पर्स को खोलकर उसमें से अपना पेन निकाला. एक हाथ से लड़के का हाथ पकड़कर दूसरे हाथ से

उसकी हथेली पर 'जीवन-रेखा' के समानांतर लिख दिया - शैफाली.





हवाएं ठुमरी गाने लगी. और झील की लहरों नें संतूर बजाना शुरू कर दिया.





लड़के नें लड़की से पूछा - शैफाली, क्या तुम सचमुच मुझसे मोहब्बत करती हो ?

लड़की नें एक हाथ से अपने उड़ते दुपट्टे को और दूसरे हाथ से चहरे पर बिखर आए बालों को ठीक करते हुए एक-बारगी

लड़के की आँखों में देखा...नज़्म के हर्फ़ धुन्धलाये हुए थे.

लड़की नें अपने पर्स को फिर से खोलकर पेन निकाला. उसे जी-भर देखा...और उसे झील की लहरों के हवाले कर दिया.





लड़का लड़की को दूर तक जाते देखता रहा. शायद एक बार पीछे देख ले.





....फिर वे कभी नहीं मिले.

झील किनारे की वो बेंच शाम को अकेलापन महसूस करती है.



( चित्र- इन्टरनेट से साभार) 

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

कहीं जंगल भी लिख...









  





उसके आसमां का रंग आसमानी लिख
तितलियाँ पकड़ने की       नादानी लिख

 
तपती धुप है            और मीलों सहरा
कहीं जंगल भी लिख....     पानी लिख


मल्हार गायेगी आँखें उसकी       देखना
सुनेगा हाल जब       मेरी जुबानी लिख


पहले लिख नाम          नर्म हथेली पर
फिर कोई लिख ग़ज़ल..   कहानी लिख


तेरे पास रख ले            सल्तनत तेरी
मेरे हिस्से     याकूत की बंदगानी लिख



(चित्र : इन्टरनेट से साभार)

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

साथ मेरा मुझको खलता है....

                            


       चाँद के लिए       मचलता है
       देखे न कोई        संभलता  है

       तेरा मेरा रिश्ता         क्या है
       क्यूँ अक्सर      यूँ मिलता है

       वो   मेरा अपना       सपना है
       तेरी आँखों में         पलता है
                                                           
       सुनो...           सैलाब लाता है
       पत्थर     जब  भी पिघलता है

       उनके अपने       मतलब होंगे
       कौन  कभी   किसको  छलता है

       साथ   मेरे      जब वो होता है
       साथ मेरा    मुझको खलता है

गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

खुद से मुलाक़ात करते हुए..


                          


 
       इतना भी अहसान     मत करना
       सभी कुछ मेरे नाम   मत करना


       इस कदर गुमान       मत करना
       पाँव तले आसमान    मत करना

       कभी खुद को        न ढूंड पाओगे
       हमसे जान पहचान    मत करना

       गुनहगार न हो जाऊं        फिर से
       मौसम को बेईमान     मत करना

       दस्तक दो       फिर अन्दर आओ
       मुझको यूँ परेशान      मत करना